N. Raghuraman’s column – Do you know why children run away from our conversation? | आपको पता है बच्चे हमारी बातचीत से दूर क्यों भागते हैं?

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10 घंटे पहले

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एन. ​​​​​​​रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. ​​​​​​​रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

अपने एक दोस्त के साथ इस वीकेंड मैं करजत (मुंबई से 100 किमी दूर) स्थित उसके फार्महाउस पर था, वह सेना में कर्नल है। उसने सालों पहले यह फार्महाउस लिया था और पर्यटकों के लिए इसे किराए पर देना शुरू कर दिया था। फार्महाउस बनाते समय शुरुआती वर्षों में हुआ एक वाकिया उसकी जिंदगी में सबसे यादगार बन गया।

हालांकि वह घटना हममें से ऐसे अधिकांश लोगों के लिए बहुत छोटी-सी लग सकती है, जिनके पास फलों के पेड़ नहीं हैं। ये वाकिया उन 30 आमों के बारे में है, जो एक युवा पेड़ से पहली फसल में निकले थे। जैसे ही उसने यह कहानी साझा की, ग्रुप में मौजूद कई लोगों ने भी अपने आसपास के पेड़ों की कहानियां बताना शुरू कर दीं कि कैसे छोटे पेड़ों से उन्हें पहली बार सीताफल, कटहल, मौसंबी यहां तक कि नींबू मिले थे। उनकी बातचीत सुनकर मैं आश्चर्य में पड़ गया कि कैसे अतीत की सुनहरी यादें (नॉस्टेल्जिया) एक समान उम्र समूह को आपस में जोड़ने वाली शक्तिशाली भावनाएं हैं।

मेरा दिमाग भी अतीत की यादों में खो गया। कैसे हम कोयले के इंजन वाली ट्रेन से जाते थे और जब ट्रेन थोड़ी मुड़ने वाली होती तो इंजन को देखने के लिए खिड़की से बाहर झांकने की कोशिश में लोहे की छड़ों में अपना मुंह दबाते। इससे हमारे चेहरे काले हो जाते और कई बार तो आंखों में कोयले के कण भी चले जाते।

अगली बार ट्रेन जब ऐसे ही किसी मोड़ से गुजरती, तो भी हम ऐसा करने से बाज नहीं आते। मुझे याद है रेलवे स्टेशन से घर लौटते हुए कैसे मैं तांगे पर हाफ पैंट पहनकर तांगे वाले के बाजू में बैठ जाता था और घोड़े की पूंछ परेशान करती थी।

पर हममें से अधिकांश लोगों ने वह परेशानी झेली क्योंकि तांगे वाले को छोड़कर अंदर बैठे हुए लोगों की तुलना में सिर्फ हम ही इकलौते होते थे, जिसे सड़क का पूरा नजारा दिखता था। ये कुछ एेसी पारंपरिक बातचीत हैं, जो बिना रुकावट चलती रहतीं और लोगों को एक-दूसरे को बेहतर तरीके से जानने में मदद मिलती।

तभी मेरे मन में जिज्ञासा जागी कि मिलेनियल्स और जेन ज़ी के मन में अतीत की कैसी यादें होंगी। उस सूचना को खोजते हुए मैंने ‘क्वैकक्वैक’ नामक एक डेटिंग ऐप के व्यापक सर्वे पर गौर किया कि कैसे नॉस्टेल्जिया मिलेनियल्स और जेन ज़ी के बीच मैचमेकर के रूप में काम करता है।

उनके लिए अतीत की यादें मतलब उनके देखे कार्टून, पॉप कल्चर जिसे वे देखना चाहते थे, टीवी शो जो वे माता-पिता के बिना देखना चाहते थे, ऐसी फिल्में जो वे क्लास बंक करने के बाद जाते थे, और संगीत जिसका वे खुलकर लुत्फ उठा सके, ये चीजें उस आयु वर्ग के बीच बड़ी हिट लगती हैं। जाहिर है वे ऐसे विषयों पर घंटों बातें कर सकते हैं और एक-दूसरे से बेहतर जुड़ सकते हैं जैसे बैगी जीन्स, ओवरसाइज कपड़े, विंटेज लुक जैसे पुरुषों के लिए मुलेट हेयर स्टाइल और महिलाओं के लिए शैग और फ्रिंज।

उनके लिए नॉस्टेल्जिया का मतलब सब कुछ यही है कि कैसे वे बिना किसी टेक्निकल मदद वाले समय से बढ़ते हुए आज हर-तरफ आधुनिक टेक्नोलॉजी वाले दौर में आ गए, जहां जीवन के हर क्षेत्र में उसकी मौजूदगी है। वे यह सोचकर आज खुद पर हंसते हैं कि कैसे वे गेम्स खेलने और गहन अध्ययन के लिए इंटरनेट कैफे जाते थे, जबकि आज जरूरत की हर चीज अंगुलियों पर मौजूद है।

वे हमेशा ताज्जुब करते हैं कि फोन, वीडियो कॉल और तुरत-फुरत मैसेजिंग के बिना कैसे उनके माता-पिता प्यार में पड़ गए। अगर आप देखें कि अगली पीढ़ी आपकी बातचीत से दूर भाग रही है, तो इसे अपना अपमान मानकर उन्हें न डांटें क्योंकि हमारे दौर के अनुभव उनके अतीत या वर्तमान से बिल्कुल नहीं जुड़ते।

फंडा यह है कि अतीत की यादें (नॉस्टेल्जिया) अभी भी इंसानों को गहराई से जोड़ती हैं, बस हर पीढ़ी के बीच इसकी विषयवस्तु अलग होगी, जो उन्होंने अपने बचपन में अनुभव की होगी।

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